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मैं कभी कभी यहाँ आता हूँ, इधर उधर भटकता हुआ, कुछ समय रुकता हूँ, कोई आवाज़ सुनाई नहीं देती। ऐसा लगता है कि किसी पुराने से मकान के खंडहर में खड़ा हूँ। मुझे हरसू यादें बिखरी नज़र आती हैं..... यादें उन दिनों की जब यह घर आबाद था.... हम से आबाद था.... क्या दिन थे वह -
उत्कर्ष में है गुनगुनाता गुन गुंजिका का गुंजन, ल्यूडिक से फैलती है झनझन झनाझन झनझन| श्री ज्ञान से सुसज्जित है श्री ओऽम का सुकंपन,हर दिशा में है फैला एक नूर यहाँ से छन छन||
हालाँकि यहाँ व्यक्तिगत सूत्र बनाना नियम के विरुद्ध है। मगर मैं अपने घर को यूं वीरान भी कैसे छोड़ सकता हूँ। सो अब जब भी यहाँ से गुज़रूँगा, अपने दामन से कुछ फूल यहाँ छोड़ जाऊंगा। FDLF के Admins अगर चाहें तो इस सूत्र को मिटा दें।
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बोल इकतारे झन झन झन झन,
काहकशां है मेरी सुंदन, शाम की सुर्ख़ी मेरा कुंदन, नूर का तड़का मेरी चिलमन, तोड़ चुका हूं सारे बंधन, पूरब पच्छम उत्तर दक्खन, बोल इकतारे झन झन झन झन......
- जोश मलीहाबादी
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हमने तुझको लाख पुकारा तू लेकिन ख़ामोश रहा, आख़िर सारी दुनिया से हम तेरे बहाने रूठ गये॥
- नासिर
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मैं अपने हर्फ़-ए अव्वल से ही तुझको बयाज़-ए दिल पे लिखता आ रहा हूँ॥
- राशिद फ़ज़ली
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हृदय के तारों को झंकृत कर दे, वो आवाज़ यही कहीं है कुटिया को मेरी सुवासित कर दे, वो पुष्प यहीं कहीं है ढूंढ रहा था मैं जिसे हरसू व्याकुल होकर वह मनभावन मीत यहीं कहीं है
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मैं हार गयी, मन मार गयी, कित जाऊं बिरह की मारी मैं सुध ना हो मोरे जी में, कब उनसे ठानी रारी मैं मोरे साजन जो भटके परदेस, और हिय अकेला मोरा घबराये निर्बाध सुमंगल होंगे वो, मैं जी को अपने समझाए
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हँस देता जब प्रात, सुनहरे अंचल में बिखरा रोली, लहरों की बिछलन पर जब मचली पड़तीं किरनें भोली, तब कलियाँ चुपचाप उठाकर पल्लव के घूँघट सुकुमार, छलकी पलकों से कहती हैं, कितना मादक है संसार।
my most fevourite lines ever perhaps,,, since my early childhood when i heard it for the first time,, i may not remember it correctly... but that doesn't matter,, say - तुझसे लफ़्ज़ों का नहीं रूह का रिश्ता है मेरा... तू मेरी साँसों में तहलील है ख़ुशबू की तरह.
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कामायनी - a poetry book always present in my reading bookshelf...
नारी तुम केवल श्रद्धा हो विश्वास रजत नग पगतल में, पीयूष स्रोत बहा करो जीवन के सुंदर समतल में।
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सर ज़मीन-ए हिन्द पर अक़वाम-ए आलम के फ़िराक़। कारवाँ बस्ते गये, हिन्दोस्ताँ बंता गया॥ फ़िराक़ गोरखपुरी
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बेहद मसरूफ हूँ, पर जब-तब पुरानी किताबों के पन्ने पलटने से बाज़ नहीं आती | आपके शब्द इन किताबों में दबे सूखे फूलों की तरह मिले... पुराने मगर खुशनुमा !
दिल खुश हुआ तो ये चुहल भरी बात याद आयी कि:
ऐ फ़िराकवाली तू ये न समझ कि फ़िराक तेरी फ़िराक में है , फ़िराक तो उसकी फ़िराक में हैं जो फ़िराक की फ़िराक में है !
:)
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गुन्जिकाआआआआआआआआआआआअ!!!! :)
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मैं इतने दिनों तक ना उपस्थित होने के लिए माफ़ी चाहती हूँ... medical school में तो सोने पर भी guilty महसूस करते हैं!!
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Joined: 1/11/2011 Posts: 196 Neurons: 4,341 Location: New Delhi, NCT, India
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फूलों के रंग से, दिल की क़लम से, तुझको लिखी रोज पाती कैसे बताऊँ, किस किस तरह से, पल पल मुझे तू सताती तेरे ही सपने, लेकर के सोया, तेरे ही यादों में जागा तेरे ख्यालों में उलझा रहा यूं, जैसे के माला में धागा बादल बिजली, चन्दन पानी, जैसा अपना प्यार लेना होगा, जनम हमें, कई कई बार- नीरज
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Joined: 12/29/2009 Posts: 8,507 Neurons: 484,288
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प्रफुल्लित है ह्रदय सुन कर फिर से वो गुंजन हो रहा है फिर से भावों का रंजन वेद की ऋचा हो या कुरान की आयतें एक ही नूर सर्वस्व, सभी का अभिनन्दन
P.S.: Ludic, तो इसका मतलब ये हुआ कि आपने मेडिकल की परीक्षा को तोड़ कर रख दिया. बधाई हो, डॉक्टर साहिबा.
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है कोई गाँव देहात में, कोई है शहरों में है कोई उन्मुक्त विचर रहा, कोई है पहरों में इक राह पर थे चले सभी, हाथों में लेकर हाथ हम साथ नहीं हैं पर लगता है कि हैं साथ देख रहा आशातुर होकर वो सूनी पड़ी राह जुड़ जाएँ फिर हाथों से हाथ, यही एक बस चाह
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Hey Congratulations Ludic.
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thanks, aap sabhi ko. haan, maine entrance exam to clear kar liya, lekin yahaan ek ek exam pass karna ek nayi chunauti ke samaan hai!
P.S. @Gunjika... aapki tabiyat kaisi hai?
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Thanks Ludic, I am fine. :)
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नूतन वर्ष के आगमन पर आप सभी को मंगलकामनाओं सहित हार्दिक बधाई !
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निगाहें ढूंढती हैं इक अजनबी से शहर में जाने पहचाने से चेहरे जिनके बिना ये मेरा अपना ही शहर अजनबी हो गया है...... - शम्स अलफ़ारुक़ी
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हर सांस में खिलती हुई कलियों की महक थी। यह बात है उस दौर की जब दिल में कसक थी। अब चाँद के हमराह निकलते नहीं वह लोग, इस शहर की रौनक़ मेरी आवारगी तक थी॥ - नासिर काज़मी
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आये भी लोग, बैठे भी, उठ भी खड़े हुये। मैं जा ही ढूंढता तेरी महफ़िल में रह गया॥ - ख़्वाजा आतिश
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चोरी चोरी हमसे तुम आकर मिले थे जिस जगह मुद्दतें गुज़रीं पर अब तक वह ठिकाना याद है ॥ - हसरत मोहानी
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हमें तो जान से उस पर निसार होना था यह हादसा भी फ़क़त एक बार होना था क़ज़ा से ख़ुद को भला हम बचायेंगे कब तक हमें भी एक दिन उस का शिकार होना था - फ़रहत बदायूनी
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सेहरा से मेरी वापसी बेवजह तो नहीं, तकदीर में था शहर को मसमार देखना।
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goodness me srirr, you are back, great to see your name.
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Thanks Tov. I am once again in my TFD family.  Its so good to see you all. How are you and your back? :) Don't take a horse ride any more. Its better to be joey in the pouch.
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srirr wrote:सेहरा से मेरी वापसी बेवजह तो नहीं, तकदीर में था शहर को मसमार देखना।
कहाँ सेहरा में घूमने चले गये थे भई। और वापस आ कर क्या बरबादी देख ली जो ऐसा शेर कहा है।
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इस महफ़िल से दूर जाना सेहरा में ही तो जाना है। और लौटा तो दोस्तों की गैरमौजूदगी से पाला पड़ा। बस इसीलिए।
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